Monday, October 08, 2007

वक़्त बीत गया

कुछ समझने में बीत गया
कुछ समझाने में
कुछ देखने में बीत गया
कुछ दिखलाने में
कुछ खुशियों में बीत गया
कुछ आसुओं में
मुस्कराहट होंठों पे लिए
हम चल पडे मंज़िल को लेकिन
कुछ को साथ लेने में बीत गया
कुछ से बिछड़ने में
बेचैनीयों के साथ आती रही
आशाओं की लहरें भी
कुछ बादलों में बीत गया
कुछ हवाओं में

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