Wednesday, December 22, 2010

dil kehta hai kuchh

दिल कहना चाहता है कुछ
चुप चुप के खुद ही सुनता है
आस पास में कोई नहीं हो
हर पल यूं ही घबराता है

सोचना इसका काम है
बस यह सोचता रहता है
कभी अतीत में
तो कभी भविष्य में खो जाता है

चाहता आखिर क्या है
यह कह नहीं पाता
इसकी चाह बस ही है कि
कोई इसकी बात सुनले और समझले

वोह बात जो उसने कही नहीं
कहने से पहले ही घबरा गया
इसकी चाह बस ही है कि
कोई इसकी घबराहट समझले

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