Sunday, March 17, 2013

humaaree duvidhaa humaara hak

क्या इस देश में, नारी होना पाप है ?
क्या इस देश में, नारी होना शाप है ?
दिन शुरू होने से रात तक दिल में छुपा कहीं डर  है
कोई घूरते न रहे
कोई पीछा  न करे
कोई छू न ले
कोई हाथ पकड़ कहीं खींच ना ले
अगर आवाज़ उठाये तो कोई हमारी जान न ले ले
हमें आज़ादी  है मगर कौन सी आज़ादी
कहता है कोई हम नाच नहीं सकते
कहता है कोई हम अपनी चाह की ज़िन्दगी जी नहीं सकते
कहता है कोई हम जो चाहे पेहन नहीं सकते
तो कहता है कोई हम घर के बाहर देर तक रह नहीं सकते
सबकी  हम पे मनमानी है तो कौन सी आज़ादी है ये
कौन सी आजादी है ये  जहां हमारी सुरक्षा न हो
कौन सी आज़ादी है ये  जहां हमारी कोई चाह न हो
कौन सी आज़ादी है ये  जहां घुट घुट के जीना पड़े
कौन सी आज़ादी है ये  जहां डर डर के जीना पड़े
घर के अन्दर घर के बाहर
अनजानों से पहचानों से
हर मिलने वालों से हमें
सावधान रहना पड़ता है
तो कौन सी आज़ादी है ये
ये कौन सी आजादी है जहां जुर्म करे कोई और ऊँगली उठे हम पे
ये  कैसा समाज है जो  अपने निक्कमेपन की गलती  हम पे  थोपे
ये  कैसा समाज है जहां हमें अपने हर हक़ के लिए लड़ना पड़े  जूझना पड़े
ये कैसा समाज है जहां हर दिन हमें अपना अस्तित्व स्थापित करना पड़े

ना मंज़ूर है हमें ऐसी आज़ादी ऐसा समाज ऐसे लोग ऐसी सोच

क्या वक़्त आ गया है जहां हमारी सुरक्षा हमारे ही हाथों में आ गयी ?
क्या वक़्त आ गया जब राक्षसों को सबक सिखाने के लिए हमें  ही माँ  दुर्गा बनना पड़े ?





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