Saturday, September 01, 2007

भोर

भोर हुई
चिड़ियों का कलरव कहता है मुझसे
जागो हे मानव निद्रा से
करना है तुमको कितना कुछ
प्रगति करे मानवता जिससे
सो सो के तुम व्यर्थ ज़िंदगी
का बहुमूल्य वक़्त खो दोगे
और जब ना मिलेगा वापस यह वक़्त
तुम ही खुद पछताओगे
यह वक़्त है महनत का
अपना फ़र्ज़ निभाने का
अब ना करोगे परिश्रम तुम तो
ना आयेगा समय खुशहाली का
जीवन की डोर देव ने तेरे हाथों में दीं है
इसे बनाओ या बिगाडो सब तेरे हाथों में है
यदी सोचते हो ऐसा तुम की
भाग्य के अनुसार सब कुछ होगा
पीछे पद जाओगे प्रगती के मार्ग में
और तुझसा मूर्ख कोई ना होगा

--- Sastry

P.S: Typically font issues. I hope you can read it.

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