Tuesday, August 21, 2007

खामोश सी शाम

अँधेरे का वक़्त है
आकाश में ढ़ेर सारे
तारे टिंमटिमा रहे हैं
बादल हमेशा की तरह
झुंडों में टहल रहे हैं
ठंडी सी हवा इधर
जमीन पर बह रही है
मैं आँखें मूंदे बैठा हूँ
और ठंडी हवा मेरे रूह को
छू के जा रही है
कई ख़्याल इस हृदय में
आ और जा रहे हैं
क्या सुहाना मौसम है
मेरे दिल के साथ एक
मीठी सी रूबरू चल रही है
रात का समय
मुहल्लाह भी कुछ खामोश सा है
मैं बस आसमान की तरफ देखता हूँ
टिमटिमाते तारों की तरफ देखता हूँ
सोचता हूँ
इस खामोशी से ना जाने मैंने कितनी बातें कर बैठी
और ठंडी सी हवा मुझे बहलाती रहती है

-- By Sastry Vadlamani

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