Friday, August 31, 2007

पुकार

यह धरती तड़प रही है
इसकी र्क्षा कर भगवान्
पापों से अपिवत्र हो गयी
इसको पिव्त्र कर भगवान्
मार काट फैले हुये हैं
ला दे तू शांति भगवान्
जो नारी देवी है
उसकी इज़्ज़त नही रही है यहाँ
अन्याय का राज्य फैला हुआ है
कौन लाएगा न्याय यहाँ
भूक प्यास से तड़प रही है
तेरी यह प्यारी संतान
जीं ना सके तो दे देती है
अपनी यह बहुमूल्य जान
जब तू भेजे इस धरती पर
मत भेज केवल तड़पने को
थोडी सी खुशियाँ भी दे दे
इन बेसहारे दुखियारों को
शक्ती दे इनको ताकी
लड़ सके यह अन्याय के विरूद्ध
शक्ती दे इनको ताकी
पा सके अपने अधिकार
बुद्धी दे इनको जिससे
परख सके यह सही गलत
बुद्धी दे इनको ताकी
सुधार सके यह अपनी जगत

-- Sastry (Written sometime in 1999)

P.S: Typical Transliteration issues.

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